Sunita gupta

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स्वैच्छिक विषय घटता आंचल

विषय _घटता आंचल 
शीर्षक_गहरी चोट 
विधा_कविता
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घटता आंचल घट रहा ,युग परिवर्तन हो रहा।संभलने वाले संभल जाओ ,आंचल का ऋण चुकाओ।

घटताआंचल मुझसे कहता,मानवता पर गहरी चोट।

 
इतना पतित हो रहा क्यों मन,उपज रही इक खोंटी खोंट|

तन के कपड़े सिमट रहे हैं,नगन हो रही कामुकता|
सिसक पड़ी ये दशा देख कर,मेरे मन की भावुकता।

बच्चे तरसें मां की ममता,की छांवों से दूर कहीं|
योवन तरसे प्यासा भूखा,अपनों में मजबूर कहीं|

सुंदरता का भाव विहंगम,भोगों मे तब्दील हुआ|
बहसी पन आँखों में छलका,मानव यों बेशील हुआ|

जीवन अब रसहीन हो गया,मन मलीन है दूषित है|
आज प्यार भी प्यार न लगता,कैसा भाव विभूषित है|

तन से कपड़े घटते-घटते,मन में नंगापन भरते|
बज्र घात भारतीय भाव पर,अक्सर लोग रहे करते|

युवती युवा काम क्रन्दन में,भूले सब आचार विचार||
रिश्ते सब निर्जीव हो गये,रहा न अब रिश्तों में प्यार!

घटता आंचल जिधर देखिए,दुख का गहरा कारण है|
हुई मानसिकता ही विकृत,प्रेम हीन उच्चारण है|


जागो जागो अभी समय है,मदहोशी में पागल क्यों|
पूँछ रही है मुझसे ममता,हाये घटता आंचल क्यों|

सुनीता 

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2 Comments

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति,,

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Gunjan Kamal

14-Jul-2023 01:59 AM

बहुत खूब

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